Thursday, April 17, 2014

The Immortals of Meluha

Hard Times

John Lesson

John Lesson

Bible - American Standard Version

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A Tale of Two Cities

श्री हनुमानजी की आरती




आरती श्री हनुमानजी
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥

।।श्री राम चालीसा।।





॥चौपाई॥

श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥

निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥


ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥


तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥

तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥


ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥

चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥


गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥

नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥


राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥


शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥

फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥


भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥

नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥


लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥

ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥


महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥

सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥


घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥

सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥


सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥

औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥


इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥

जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥


जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥

सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥


सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥


सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥


जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥

राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥


ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥


सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥


याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥

आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥


और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥

तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥


साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥

अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥


श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥


॥ दोहा॥


सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।

हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥


राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।


जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥

भगवान शिव के 108 नाम




शिव कल्याण स्वरूप
महेश्वर माया के अधीश्वर
शम्भू आनंद स्स्वरूप वाले
पिनाकी पिनाक धनुष धारण करने वाले
शशिशेखर सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
वामदेव अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
विरूपाक्ष भौंडी आँख वाले
कपर्दी जटाजूट धारण करने वाले
नीललोहित नीले और लाल रंग वाले
शंकर सबका कल्याण करने वाले
शूलपाणी हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
खटवांगी खटिया का एक पाया रखने वाले
विष्णुवल्लभ भगवान विष्णु के अतिप्रेमी
शिपिविष्ट सितुहा में प्रवेश करने वाले
अंबिकानाथ भगवति के पति
श्रीकण्ठ सुंदर कण्ठ वाले
भक्तवत्सल भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
भव संसार के रूप में प्रकट होने वाले
शर्व कष्टों को नष्ट करने वाले
त्रिलोकेश तीनों लोकों के स्वामी
शितिकण्ठ सफेद कण्ठ वाले
शिवाप्रिय पार्वती के प्रिय
उग्र अत्यंत उग्र रूप वाले
कपाली कपाल धारण करने वाले
कामारी कामदेव के शत्रु
अंधकारसुरसूदन अंधक दैत्य को मारने वाले
गंगाधर गंगा जी को धारण करने वाले
ललाटाक्ष ललाट में आँख वाले
कालकाल काल के भी काल
कृपानिधि करूणा की खान
भीम भयंकर रूप वाले
परशुहस्त हाथ में फरसा धारण करने वाले
मृगपाणी हाथ में हिरण धारण करने वाले
जटाधर जटा रखने वाले
कैलाशवासी कैलाश के निवासी
कवची कवच धारण करने वाले
कठोर अत्यन्त मजबूत देह वाले
त्रिपुरांतक त्रिपुरासुर को मारने वाले
वृषांक बैल के चिह्न वाली झंडा वाले
वृषभारूढ़ बैल की सवारी वाले
भस्मोद्धूलितविग्रह सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
सामप्रिय सामगान से प्रेम करने वाले
स्वरमयी सातों स्वरों में निवास करने वाले
त्रयीमूर्ति वेदरूपी विग्रह करने वाले
अनीश्वर जिसका और कोई मालिक नहीं है
सर्वज्ञ सब कुछ जानने वाले
परमात्मा सबका अपना आपा
सोमसूर्याग्निलोचन चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले
हवि आहूति रूपी द्रव्य वाले
यज्ञमय यज्ञस्वरूप वाले
सोम उमा के सहित रूप वाले
पंचवक्त्र पांच मुख वाले
सदाशिव नित्य कल्याण रूप वाले
विश्वेश्वर सारे विश्व के ईश्वर
वीरभद्र बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले
गणनाथ गणों के स्वामी
प्रजापति प्रजाओं का पालन करने वाले
हिरण्यरेता स्वर्ण तेज वाले
दुर्धुर्ष किसी से नहीं दबने वाले
गिरीश पहाड़ों के मालिक
गिरिश कैलाश पर्वत पर सोने वाले
अनघ पापरहित
भुजंगभूषण साँप के आभूषण वाले
भर्ग पापों को भूंज देने वाले
गिरिधन्वा मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
गिरिप्रिय पर्वत प्रेमी
कृत्तिवासा गजचर्म पहनने वाले
पुराराति पुरों का नाश करने वाले
भगवान् सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न
प्रमथाधिप प्रमथगणों के अधिपति
मृत्युंजय मृत्यु को जीतने वाले
सूक्ष्मतनु सूक्ष्म शरीर वाले
जगद्व्यापी जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
जगद्गुरू जगत् के गुरू
व्योमकेश आकाश रूपी बाल वाले
महासेनजनक कार्तिकेय के पिता
चारुविक्रम सुन्दर पराक्रम वाले
रूद्र भक्तों के दुख देखकर रोने वाले
भूतपति भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
स्थाणु स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
अहिर्बुध्न्य कुण्डलिनी को धारण करने वाले
दिगम्बर नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
अष्टमूर्ति आठ रूप वाले
अनेकात्मा अनेक रूप धारण करने वाले
सात्त्विक सत्व गुण वाले
शुद्धविग्रह शुद्धमूर्ति वाले
शाश्वत नित्य रहने वाले
खण्डपरशु टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
अज जन्म रहित
पाशविमोचन बंधन से छुड़ाने वाले
मृड सुखस्वरूप वाले
पशुपति पशुओं के मालिक
देव स्वयं प्रकाश रूप
महादेव देवों के भी देव
अव्यय खर्च होने पर भी न घटने वाले
हरि विष्णुस्वरूप
पूषदन्तभित् पूषा के दांत उखाड़ने वाले
अव्यग्र कभी भी व्यथित न होने वाले
दक्षाध्वरहर दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
हर पापों व तापों को हरने वाले
भगनेत्रभिद् भग देवता की आंख फोड़ने वाले
अव्यक्त इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
सहस्राक्ष अनंत आँख वाले
सहस्रपाद अनंत पैर वाले
अपवर्गप्रद कैवल्य मोक्ष देने वाले
अनंत देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित
तारक सबको तारने वाला

परमेश्वर सबसे परे ईश्वर