Friday, April 11, 2014

श्री देवीजी की आरती


श्री देवीजी की आरती
जग जननी जय। जय।। (माँ)। जग जननी जय। जय।। (माँ)।।,
भयहारिणी, भवतारिणी, भव भामिनी जय। जय।। जय।।।
तू ही सत् चित् सुखमय शुद्ध ब्रह्यरूपा।
सत्य सनातन सुन्दर पर शिव सूर भूपा।।१।।
जग जननी।
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी।
अमल अनन्त अगोचर, अज आनँद राशी।।२।।
जग जननी।
अविकारी, अधहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि हर सँहारकारी।।३।।
जग जननी।
तू विधि वधू, रमा, तू उमा, महामाया।
मूल प्रकृति विद्या तू, तू जननी, जाया।।४।।
जग जननी।
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रज रानी राधा।
तू वाच्छाकल्पय्रुम, हारिणि सब बाधा।।५।।
जग जननी।
दश विद्या, नव दुर्गा, नानाशस्त्रकटा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव नव रूप धारा।।६।।
जग जननी।
तु परधाम निवासिनि, भहाबलासिनि तू।
तु ही श्मशान विहारिणी, ताण्डवलासिनि तू।।७।।
जग जननी।
सुर मुनि मोहिनी सभ्या तू शोभा धारा।
विवसन विकट सरूपा, प्रलयमयी धारा।।८।।
जग जननी।
तू ही स्नेह सुधामयि, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही आस्थि तना।।९।।
जग जननी।
मूलाधार निवासिनि, इह पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू दरदे।।१०।।
जग जननी।
शक्ति शालिधर तू ही नित्य अभेदमयी।
भेदप्रदर्शिनी वाणी विभले । वेदत्रयी।।११।।
जग जननी।
हम अति दीन दुखी मा। विपत जाल घेरे।
हैँ कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे।।१२।।
जग जननी।
निज स्वभाववश जननी। दया दृष्टि की जै।
करूण कर करूणामयि। चरण शरण दी जै।।१३।।
जग जननी।

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