Friday, April 11, 2014

HANUMAN JI KI AARTI

दुष्टदलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरिवर कापै,
रोग दोष जाके निकट न झांकै।
अंजनिपुत्र महा बलदाइ,
संतन के प्रभु सदा सहाइ।
दे बीरा रघुनाथ पठाये,
लंका जारि सिय सुधि लाये।
लंका सो कोट समुद्र सी खाइ,
जात पवनसुत बार ना लाइ।
लंका जारि असुर संहारे,
सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूछित पडे सकारे,
अनि संजीवन प्राण उबारे।
बैठी पाताल तोरि जमकारे,
अहिरावन की भुजा उखारे।
बाय भुजा असुर दल मारे,
दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर नर मुनिजन अरती उचारे।
कंचन थार कपूर लै छाइ,
अरती करत अजना माइ।
जो हनुमान जी की अरती गावै,
बसि बैकुठ परमरद पावै।
लंक विध्वस कीन्ह रघुराइ,

तुलसीदास प्रभु कीरति गाइ।

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